Saturday, November 21, 2015

पंचक- चंद्रमा पाँच नक्षत्रों में से गुजरता है

पंचक का अर्थ है - पांच, पंचक चन्द्रमा की स्थिति पर आधारित गणना हैं. गोचर में चन्द्रमा जब कुम्भ राशि से मीन राशि तक रहता है तब इसे पंचक कहा जाता है, इस दौरान चंद्रमा पाँच नक्षत्रों में से गुजरता है. ऎसे भी कह सकते हैं कि धनिष्ठा नक्षत्र का उत्तरार्ध, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र ये पाँच नक्षत्र पंचक कहलाते है. बहुत से विद्वान धनिष्ठा नक्षत्र का पूरा भाग पंचक में मानते हैं तो कुछ आधा भाग मानते हैं. पंचक के समय में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है. इस समय में किया गया कार्य पाँच गुना बढ़ जाता है।

सूर्य की डिग्री के आधार पर भी पाँच तरह के पंचक बनते हैं. यह हैं :- रोग, अग्नि, नृप, चोर, मृत्यु. रोग बाण में यज्ञोपवीत नही होता, अग्नि बाण में गृह निर्माण अथवा गृह प्रवेश नहीं होता, नृप बाण में नौकरी वर्जित है, चोर बाण में यात्रा वर्जित है और मृत्यु बाण में शादी वर्जित मानी गई है।

पंचक लगने पर उक्त कार्य करने से विलम्ब का सामना करना पड़ सकता है. राजमार्त्तण्ड के अनुसार धनिष्ठा नक्षत्र में दक्षिण दिशा की यात्रा अथवा छत डलवाना या ईंधन इकठ्ठा करने अथवा चारपाई बनाने से अग्निभय होता है. यही सभी कार्य शतभिषा नक्षत्र में करने से कलह होता है. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में करने से रोग होता है, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में करने से जुर्माना होता है और रेवती नक्षत्र में करने पर धन की हानि होती है।

Saturday, November 14, 2015

मुहूर्त विचार (www.AstroRrachita.in)

मुहूर्त विचार

आम भाषा में हम जिसे शुभ और अशुभ समय कहते हैं ज्योतिषशास्त्र की भाषा में वह समय ही मुहूर्त कहलाता है.ज्योतिषशास्त्र कहता है किसी भी कार्य की सफलता की आधी गारंटी तभी मिल जाती है जब कोई कार्य शुभ मुहूर्त में किया जाता है.यही कारण है कि हमें जीवन में मुहूर्त का ध्यान रखकर कोई कार्य शुरू करना चाहिए.

जैसे किसी रोग विशेष के लिए विशेष दवाई खानी होती है ठीक उसी प्रकार कार्य विशेष के लिए अलग अलग शुभ मुहूर्त होता है. प्राचीन काल में यज्ञादि कार्यों के लिए मुहूर्त का विचार किया जाता था परंतु जैसे जैसे मुहूर्त की उपयोगिता और विलक्षणता से हम मनुष्य परिचित होते गये इसकी उपयोगिता दैनिक जीवन में बढ़ती चली गयी. मुहूर्त में विश्वास रखने वाले व्यक्ति कोई भी कदम उठाने से पहले मुहूर्त का विचार जरूर करते हैं.

जिन व्यक्तियो की जन्म कुण्डली नहीं है या उनमें किसी प्रकार का कोई दोष है वैसे व्यक्तियों के लिए भी मुहूर्त बहुत अधिक लाभप्रद होता है. अक्सर देखा देखा गया है कि ऐसे व्यक्ति भी शुभ मुहूर्त में कार्य करके सफल हुए हैं. आम जीवन में मुहूर्त के महत्व पर ज्योतिषशास्त्र कहता है कि जिन व्यक्तियों की कुण्डली उत्तम है वह भी अगर शुभ मुहूर्त का विचार करके कार्य नहीं करें तो उनकी सफलता में भी बाधा आ सकती है अत: मुहूर्त हर किसी के लिए आवश्यक है. विवाह के संदर्भ में तो मुहूर्त का विचार बहुत ही आवश्यक माना गया है. विवाह को नया जन्म माना जाता है, यह नया जीवन कैसा होगा वर वधू के जीवन में किस प्रकार की स्थिति रहेगी यह सब विवाह मुहूर्त देखकर ज्ञात किया जा सकता है.  

मुहूर्त के लिए आवश्यक तत्व

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मुहूर्त विचार में तिथि के साथ लग्न और नक्षत्र विचार भी आवश्यक होता है. अगर आपको शुभ कार्य करना है तो शुभ और कोमल नक्षत्र में कार्य शुरू करना  चाहिए इसी प्रकार क्रूर कार्य के लिए कठोर और क्रूर नक्षत्रों का विचार किया जाना चाहिए. सफल मुहूर्त के लिए लग्न का शुद्ध होना भी आवश्यक माना गया है अत: मुहूर्त का विचार करते समय लग्न की शुद्धि का भी ध्यान रखना चाहिए अगर नवमांश भी शुद्ध हो तो इसे सोने पे सुहागा कहा जाना चाहिए.

ध्यान देने वाली बात है कि मुहूर्त की सफलता के लिए यह देखना चाहिए कि अष्टम भाव में कोई ग्रह नहीं हो और लग्न स्थान में शुभ ग्रह विराजमान हो. अगर ऐसी स्थिति नहीं बन रही है तो देखना चाहिए कि त्रिकोण एवं केन्द्र में शुभ ग्रह हों तथा तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में पाप ग्रह हों. उत्तम मुहूर्त का विचार करते समय यह भी देखना चाहिए कि लग्न, चन्द्रमा और कार्य भाव पाप कर्तरी में नहीं हों अर्थात लग्न चन्द्र से दूसरे तथा बारहवें भाव में पाप ग्रह नहीं हों.

मुहूर्त में सावधानी

मुहूर्त के अन्तर्गत कुछ विशेष प्रकार की सावधानियों का जिक्र किया गया है, जिसके अनुसार रिक्ता तिथियों यानी चतुर्थी, नवमी एवं चतुदर्शी के दिन रोजगार सम्बन्धी कोई भी नया काम नहीं शुरू करना चाहिए. शुभ एवं मांगलिक कार्य अमावस्या तिथि में शुरू नहीं करना चाहिए. रविवार, मंगलवार एवं शनिवार के दिन समझौता एवं सन्धि नहीं करनी चाहिए. दिन, तिथि व नक्षत्र का योग जिस दिन 13 आये उस दिन उत्सव का आयोजन नहीं करना चाहिए. नन्दा तिथियों एवं प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथि के दिन नवीन योजना पर कार्य शुरू नहीं करना चाहिए. कोई ग्रह जब उदय या अस्त हो तो उसके तीन दिन पहले और बाद में नया काम नहीं करना चाहिए. जन्म राशि और जन्म नक्षत्र का स्वामी जब अस्त, वक्री अथवा शत्रु ग्रहों के बीच हों तब आय एवं जीवन से जुड़े विषय को विस्तार नहीं देना चाहिए. मुहूर्त में क्षय तिथि का भी त्याग करना चाहिए. असफलता से बचने के लिए जन्म राशि से चौथी, आठवीं, और बारहवीं राशि पर जब चन्द्र हो उस समय नया काम शुरू नहीं करना चाहिए. देवशयन काल में बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं दिलाना चाहिए. बुधवार के दिन उधार देना व मंगलवार को उधर लेना मुहूर्त की दृष्टि से शुभ नहीं माना गया है. नये वाहन खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि आपकी राशि से चन्द्रमा घात राशि पर मौजूद नहीं हो.

मुहूर्त सार

जीवन में मुहूर्त के महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता है. किसी व्यक्ति की सफलता, असफलता और जीवन स्तर में परिवर्तन के संदर्भ में मुहूर्त की महत्ता को अलग नहीं किया जा सकता है. हमारे जीवन से जुड़े 16 संस्कारों एवं दैनिक कार्यकलापों के संदर्भ में भी मुहूर्त की बड़ी मान्यता है जिसे हमें स्वीकार करना होगा.

Saturday, November 07, 2015

Dhanteras the day of golden serpant

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Festival of Wealth

An ancient legend ascribes the occasion to on interesting story about the 16-year-old son of King Hima. His horoscope predicted his death by snake-bite on the fourth day of his marriage. On that particular day, his newly-wed wife did not allow him to sleep. She laid out all her ornaments and lots of gold and silver coins in a heap at the entrance of the sleeping chamber and lit lamps all over the place. Then she narrated stories and sang songs to keep her husband from falling asleep. The next day, when Yama, the god of Death, arrived at the prince’s doorstep in the guise of aSerpent, his eyes were dazzled and blinded by the brilliance of the lamps and the jewellery. Yama could not enter the Prince's chamber, so he climbed on top of the heap of gold coins and sat there the entire night listening to the stories and songs. In the morning, he silently went away. Thus, the young prince was saved from the clutches of death by the cleverness of his new bride, and the day came to be celebrated as Dhanteras. The following day came to be called Naraka Chaturdashi ('Naraka' means hell and Chaturdashi means 14th). It is also known as ‘Yamadeepdaan’ as the ladies of the house light earthen lamps or ‘deep’ and these are kept burning throughout the night glorifying Yama, the God of Death. Since this is the night before Diwali, it is also called 'Chhoti Diwali' or Minor Diwali